शाह का घाटी दौरा
Shah's Valley Tour
Shah's Valley Tour : घाटी में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की यह दहाड़ की पाक से नहीं, युवाओं से बात होगी, बिल्कुल सही है और यही होना भी चाहिए। आखिर पाकिस्तान से क्यों और क्या बात की जाए, जबकि जिस क्षेत्र को पाकिस्तान ने अपने कब्जे में ले रखा है, वह भारत का ही हिस्सा है। यह मामला कभी भी पेचीदा नहीं हो सकता था, अगर पूर्व में भारतीय राजनीतिकों ने इतनी स्पष्ट सोच के साथ काम किया होता। घाटी में अनुच्छेद 370 के खत्म होने के बाद जो हालात सुधरे हैं, उनका श्रेय मौजूदा मोदी सरकार को ही दिया जाना चाहिए। आजादी के बाद से ही घाटी आतंकियों के निशाने पर रही है। इस जन्नत को जहन्नुम बनाने वाले लोगों को अब अगर कड़ा जवाब मिल रहा है तो यह न केवल घाटी अपितु पूरे देश के लिए सुखद है। यह भी खूब है कि आतंकियों का गढ़ माने जाने वाले बारामुला में बीते तीन दशक बाद देश के किसी गृहमंत्री ने जनसभा की है। यह अपने आप में जम्मू-कश्मीर को शेष भारत से जोडऩे और इस इलाके में शांति और विकास की नई कथा लिखे जाने की शुरुआत भर है। हालांकि यह और बात है कि इतने बड़े परिवर्तन के बावजूद न घाटी में विरोधियों के पास कुछ सार्थक बोलने को है और न ही बाकी देश के विपक्ष के पास। हालांकि घाटी की जनता जानती है कि पिछले तीन-चार साल के अंदर वे कितने बड़े परिवर्तन के साक्षी बन चुके हैं।
शाह ने कहा कि घाटी में दहशतगर्दी को सहन नहीं किया जाएगा। यह केंद्र सरकार की प्रतिबद्धता ही है कि अब घाटी में आतंकियों पर लगातार अंतिम प्रहार हो रहा है। बीते वर्षों में अनेक आतंकी खत्म किए जा चुके हैं और पाकिस्तान से आने वाली हर खेप को नेस्तनाबूद किया जा रहा है। घाटी में पिछले कुछ वर्षों में सुरक्षाबलों पर पत्थरबाजी एक आम वारदात होती थी, जिसमें महिलाएं तक शामिल होती थीं। लेकिन अब इन घटनाओं पर भी रोक लगी है, इसकी वजह वह विश्वास बहाली है जोकि केंद्र व राज्य के लोगों के बीच बनी है। जाहिर है, घाटी को शिक्षा, रोजगार, आवास और तमाम उन सुविधाओं की जरूरत है जोकि किसी भी नागरिक के लिए आवश्यक होती हैं, तब क्या यह सब आतंक के दौर में हासिल हो सकता है। आजकल यहां सुधरे हालात घाटी के उन नेताओं के चेहरे पर तमाचा हैं जोकि नहीं चाहते कि घाटी में शांति स्थापित हो और यहां विकास की फसलें लहलहाएं। ऐसा होने से इन नेताओं का नुकसान होगा और उनकी राजनीतिक चाहतों का अंत भी। पाकिस्तान परस्ती करने वाले अनेक नेताओं के मुंह में हमेशा अलगाववाद का मंत्र रहता है, वे जब चाहे, जैसे चाहे इसका आलाप करते रहते हैं। गुपकार समझौते के नाम पर अनुच्छेद 370 की बहाली का सपना घाटी के लोगों को दिखाने वाले नेताओं को शाह ने अपने संबोधन में कड़ा जवाब दिया है।
शाह ने कहा भी कि कश्मीर के लोगों के पास दो ही मॉडल हैं, एक मोदी और दूसरा गुपकार। गुपकार की जुगलबंदी करने वालों में कांग्रेस भी शामिल है, जिनके नेता आजकल भारत जोड़ो यात्रा निकाल रहे हैं। आखिर इससे बड़ी भारत जोडऩे की बात क्या होगी कि अब कश्मीर शेष भारत से खुद को जुड़ा हुआ महसूस कर रहा है और यहां की जनता भी खुशी महसूस कर रही है। एक आम कश्मीर जिसमें मुस्लिम, कश्मीरी पंडित, हिंदू, सिख और दूसरे समुदायों के लोग शामिल हैं, का वास्ता अलगाववाद से नहीं है। वे देश की मुख्यधारा में रहकर जीवन जीना चाहते हैं। लेकिन गुपकार जैसे गठबंधन करके घाटी के अलगावपसंद नेता जनता को गुमराह कर रहे हैं। विदेश से फंड हासिल करके घाटी की गलियों में दहशतगर्दी फैलाने वालों के खिलाफ अब अगर जबरदस्त चोट हो रही है तो इसका पूरे देश में स्वागत हो रहा है।
केंद्रीय गृहमंत्री ने गुज्जर-बक्करवाल समुदाय को आरक्षण जारी रहने की घोषणा की है, इसके अलावा उन्होंने पहाडिय़ों को भी इसका पूरा लाभ देने की मंशा जाहिर की है। उन्होंने उन आशंकाओं को भी खारिज कर दिया है, जिनके तहत विपक्षी विधानसभा चुनाव न करा कर मौजूदा स्थिति ही बनाए रखने का केंद्र पर आरोप लगाते हैं। यह काफी हास्यास्पद है कि घाटी की नेता महबूबा मुफ्ती ने यह पूछा था कि शाह बताकर जाएं कि घाटी में क्या बदला है? आजकल मीडिया में घाटी की जो तस्वीरें आती हैं, वे यहां हो रही सांस्कृतिक गतिविधियों, खेल, कारोबार और केंद्रीय मंत्रियों, उपराज्यपाल आदि की ओर से आयोजित किए जा रहे कार्यक्रमों की होती हैं, इससे पहले यहां से सिर्फ तैनात सुरक्षा बलों और किसी वारदात की फोटो आदि ही आती थी। अब अगर क्या बदला की बात करें तो यह भी सच है कि घाटी में 30 हजार से ज्यादा पंचायत प्रतिनिधि जनसेवा में जुटे हैं। घाटी में पिछले तीन वर्षों के दौरान 56 हजार करोड़ रुपये का निवेश हो चुका है। यहां पर भ्रष्टाचार निरोधी ब्यूरो स्थापित किया गया है। इसके अलावा घाटी में इस वर्ष अक्तूबर तक 22 लाख पर्यटक आ चुके हैं। यहां 77 लाख लोगों को निशुल्क इलाज के लिए आयुष्मान कार्ड दिए गए हैं।
वास्तव में घाटी आजकल सुकून की सांस ले रही है और यहां प्रत्येक धर्म का निवासी सामान्य जीवन गुजार रहा है। बदलाव यही होता है, यह बेहद मुश्किल कार्य है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रतिबद्धता से यह संभव हो पा रहा है। सरकारें पहले भी आई हैंं, उन्होंने घाटी को लेकर कुछ भी साहसिक करने की कभी नहीं सोची। उनकी सोच पाकिस्तान के प्रति नरम रही और वे बातचीत के राग का ही आलाप करती रही, हालांकि बातचीत आदि की कभी भी भारत और पाकिस्तान के बीच गुंजाइश रही नहीं ही। मौजूदा सरकार की दो टूक कंगाल हो चुके पाकिस्तान को सही जवाब है। संयुक्त राष्ट्र और अन्य वैश्विक मंचों पर भारत के प्रति नफरत का प्रदर्शन करने वाला पाकिस्तान कश्मीर के अपने कब्जाए इलाके में ढ़ंग की सडक़ें तक मुहैया कराने में असफल है। जनता विद्रोह पर उतारू है, जिसका पाक सेना लगातार दमन कर रही है, लेकिन भारतीय कश्मीर के संबंध में बोलने का पाक हुक्मरानों के पास बहुत समय है। हालांकि अब यह तुलना भी खत्म हो जानी चाहिए क्योंकि भारत को गुलाम कश्मीर भी अपने साथ लाना चाहिए।